शिवसेना मंत्री ‘गायब’, फडणवीस- ‘आप करेंगे तो ठीक, हम करें तो गलत?’

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

महाराष्ट्र की ‘महायुति’ (महागठबंधन) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, ऐसा लग रहा है! सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में एक बड़ा राजनीतिक ड्रामा देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री के सहयोगी शिवसेना (शिंदे गुट) के कई मंत्री ‘गायब’ रहे। डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और शंभुराज देसाई तो मौजूद थे, लेकिन बाकी मंत्री मंत्रालय तो पहुंचे, मगर बैठक में शामिल नहीं हुए

यह ‘पॉलिटिकल साइलेंस’ किसी और वजह से नहीं, बल्कि बीजेपी की ‘ओवर-स्मार्ट’ जॉइनिंग रणनीति को लेकर है। स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले, जिस तरह से शिवसेना (शिंदे गुट) के नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया जा रहा है, उसने गठबंधन में खटास पैदा कर दी है। नाराजगी की शुरुआत तब हुई जब शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के मुख्य यूथ लीडर दीपेश महात्रे अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। इससे न सिर्फ उद्धव गुट को, बल्कि शिंदे गुट को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है।

डोंबिवली के ‘प्रवेश’ पर भड़के शिवसेना मंत्री

कैबिनेट बैठक खत्म होने के बाद, शिवसेना के इन ‘नाराज़’ मंत्रियों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और डोंबिवली में हुए प्रवेश को लेकर अपनी जबरदस्त नाराज़गी जताई।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने भी इस ‘भाई-भाई’ की नोक-झोंक पर ठोस और कड़ा जवाब दिया। उन्होंने साफ कहा कि, “शिवसेना के सभी मंत्री नहीं, लेकिन कुछ मंत्री मौजूद थे।” और फिर, अपनी बात पर आते हुए उन्होंने शिवसेना मंत्रियों की नाराज़गी पर सीधा प्रहार किया:

“उल्हासनगर में शुरुआत आप लोगों ने ही की थी। आप करेंगे तो ठीक, और बीजेपी करेगी तो गलत-ऐसा नहीं चलेगा।”

यानी, फडणवीस ने स्पष्ट कर दिया कि यह खेल दोनों तरफ से शुरू हुआ है।

CM फडणवीस का ‘कड़ा संदेश’: “अब से नो एंट्री!”

मामले को शांत करने और ‘महायुति’ में दरार को बढ़ने से रोकने के लिए, मुख्यमंत्री ने एक स्पष्ट संदेश जारी किया। उन्होंने कहा कि “अब से एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं को प्रवेश मत दीजिए।”

हालांकि, उन्होंने तुरंत यह भी जोड़ दिया कि “लेकिन इस नियम का पालन दोनों पार्टियों को करना होगा।”

यह बयान एक तरह से ‘वार्निंग’ भी है और ‘समझौते’ का प्रस्ताव भी। इसका मतलब है कि अब अगर बीजेपी ने शिवसेना के नेताओं को अपने पाले में खींचा, तो शिवसेना (शिंदे) को भी बदले में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को लेने की खुली छूट मिल जाएगी। स्थानीय चुनावों से पहले, यह राजनीतिक दांवपेच दिखाता है कि गठबंधन के भीतर ‘पावर शेयरिंग’ और ‘वर्चस्व’ की लड़ाई कितनी गहरी है!

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